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Monday, March 28, 2011

Know About Teerthankar Rishabhdev

प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण नवमी को ऋषभदेव जन्म्कल्यानक पर्व अथवा आम भाषा में  आदिनाथ  जयंती पर्व कहा जाता है, मनाया जाता है। इस दिन इस अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का जन्म हुआ था। वर्तमान अवसर्पिणी के तृतीय काल में चौदह मनु (कुलकर) हुए जिनमें चौदहवें मनु नाभिराय थे। इन्हीं नाभिराय और उनकी पत्नी मरूदेवि के चैत्र कृष्ण नवमी के दिन उत्तराषाढ नक्षत्र और ब्रह्म नामक महायोग में मति, श्रुत और अवधिज्ञान के धारक पुत्र का जन्म अयोध्या में हुआ था। इन्द्रों ने बालक का सुमेरु पर्वर पर अभिशेक महोत्सव करके ‘ऋषभ’ नाम रखा गया।
ऋषभदेव के अनेक नाम
ऋषभदेव के हिरण्यगर्भ, स्वयंभू, विधाता, प्रजापति, इश्वाक, पुरुदेव, वृषभदेव, आदिनाथ इत्यादि अनेक नाम पाये जाते हैं। महापुराण के अनुसार चूंकि उनके स्वर्गावतरण के समय माता ने वृषभ को देखा था, अतः वे वृषभ नाम से पुकारे गये। कल्पसूत्र में उपर्युक्त कारण के अतिरिक्त उनके उरुस्थल पर वृषभ का चिन्ह होने का कारण भी उल्लिखित किया है। भागवत पुराण के अनुसार उनके सुन्दर शरीर, विपुल कीर्ति, तेज, बल, ऐश्वर्य, यश और पराक्रम प्रभूति सद्गुणों के कारण महाराजा नाभि ने उनका ‘ऋषभ’ नाम रखा। वृषभदेव जगत भर में ज्येष्ठ हैं और जगत का हित करने वाले धर्म रूपी अमृत की वर्षा करेंगे, एतदर्थ ही इन्द्र ने उनका नाम ‘वृषभदेव’ रखा। वृष श्रेष्ठ को कहते है। भगवान श्रेष्ठ धर्म से शोभायमान हैं, इसलिये भी इन्द्र उन्हें ‘वृषभस्वामी’ के नाम से पुकारा। जब वे गभग में थे तभी हिरण्य (स्वर्ण) की वर्षा हुई थी, इसलिये देवों ने उन्हें ‘हिरण्यगर्भ’ कहा। वर्तमान जन्म से पूर्व तीसरे जन्म जो तीन ज्ञान प्रकट हुए थे उन्हीं के साथ वे उत्पन्न हुए इसलिये ‘स्वयम्भु’ कहे जाते हैं। उन्होंने भारत क्षेत्र में नाना प्रकार की व्यवस्थाएं की, अतः वे ‘विधाता’ कहे जाते हैं। वे सब ओर से प्रजा की रक्षा करते हुए ही प्रभु हुए, अतः ‘प्रजापति’ कहलाते हैं। उनके रहते हुए प्रजा ने इक्षु रस का आस्वादन किया, इस लिये उन्हे इक्ष्वाकु कहते हैं। वे समस्त पुराण पुरुषों में प्रथम थे, महिमा के धारक और महान थे तथा अतिशय देदीप्यमान थे अतः उन्हें ‘पुरुदेव’ कहते हैं। धर्म कर्म के आदिप्रवक्ता होने के कारण ऋषभदेव को आदिनाथ भी कहा जाता है।
गृहस्थ जीवन
ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर थे। जब वे युवा हुए तो नन्दा और सुनन्दा नामक कन्याओं के साथ उनका विवाह हुआ। नन्दा के भरत नामक चक्रवर्ती पुत्र और ब्रह्मी नामक पुत्री युगल रूप में उत्पन्न हुई। इन्हीं भरत ले नाम से इस देश का नाम भारत पडा।
भरत और ब्राह्मी के अतिरिक्त नन्दा रानी के वृषभसेन आदि अट्ठानवे पुत्र और हुए। सुनन्दा नामक दूसरी रानी के बाहुबली नामक पुत्र तथा अतिशय रूपवती सुन्दरी नामक पुत्री को जन्म दिया।
ऋषभदेव ने असि, मसि, कृषि, शिल्प, वाणिज्य और व्यापार इन छः विद्याओं का सूत्रपात किया। कृषि और उद्योग में अद्भुत सामंजस्य स्थापित किया। कर्मयोग की वह रसधारा बही कि उजडते और वीरान होते जन-जीवन में सब और नव वसंत खिल उठा, महक उठा। जनता ने उन्हें अपना स्वामी माना और धीरे-धीरे  बदलते हुए समय के अनुसार दण्ड-व्यवस्था, विवाह आदि समाज-व्यवस्था का निर्माण हुआ।

आज तीर्थंकर ऋषभदेव भगवान का जन्म कल्याणक दिवस है

In Jainism, Rishabh Dev (ऋषभदेव) or Adinatha (आदिनाथ) (other names used: Riṣhabh, Riṣhabhanāth, Rushabh, Rushabhdev, Adinath or Adishwar or Kesariyaji; Sanskrit ṛṣabha meaning "best, most excellent") was the first of the 24 Tirthankara. He belonged to the House of Ikshwaku, which was also known as the "House of the Sun".
According to Jain beliefs, Rishabha was the first Tirthankar of the present age (Avasarpini). Because of this, he had the name of Ādināth - the original lord.