गुजरात : दिगंबर जैन मुनि पर प्राणघातक
हमला, दो श्वेताम्बर मुनियों को ट्रक ने कुचला
इन दुर्घटनाओं के विरोध में जैन समाज ने की
बोरीवली में आपात बैठक
मुंबई
२ जनवरी २०१३। जैन धर्मावलंबियों के लिए
नववर्ष दुखद घटनाएँ लेकर आया है. एक दुर्घटना गिरनार, जूनागढ़ की है तो दूसरी भरूच
की है. इन दुर्घटनाओं के विरोध में जैन समाज ने की बोरीवली में आपात बैठक का आयोजन
किया, जिसमें बृहत् मुंबई के सभी उपनगरों एवं दक्षिण मुंबई से काफी संख्या में समाज
के गणमान्य सदस्यों एवं श्रावकों ने भाग लिया.
जैन मुनि पर हुए हमले के विरोध में सम्पूर्ण
जैन समाज आगामी 7 जनवरी २०१३ को प्रातः ९ बजे से हीरा बाज़ार से आजाद मैदान तक मुंह पर काली पट्टियां बांधकर
विरोध रैली निकालेगा और प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति एवं गुजरात के मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन
महाराष्ट्र के राज्यपाल को सौंपा जाएगा ।
ज्ञात हो कि 1 जनवरी को सायं ६ बजे मुनिश्री प्रबल सागर जी
महाराज सिद्धक्षेत्र गिरनार (गुजरात) में पांचवी टोंक (कमल कुण्ड) से वापसी कर रहे
थे, तब कुछ असामाजिक तत्वों एवं स्थानीय पंडों द्वारा
मुनिश्री पर चाकुओं से प्राणघातक हमला किया गया, इसमें
मुनिश्री के पेट में ५ घहरे घाव हुए और काफी रक्त बहता रहा जिससे मुनि तुरंत बेहोश
हो गए. घायल अवस्था और कडाके की ठिठुरती ठण्ड में भी दिगंबर मुनि घंटों पहाड़ पर ही
पड़े रहे, रात को करीब १ बजे उन्हें पालकी वालों ने पहाड़ से नीचे उतारा और फिर
रोगिवाहिका से जूनागढ़ के एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहाँ उनका ऑपरेशन हुआ
पर अभी भी उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई है.
ध्यान दें कि दिगंबर मुनि दीक्षा लेने के बाद
कभी भी किसी प्रकार के वाहन का इस्तेमाल नहीं करते और ना ही रात्रिकाल में एक
स्थान से दूसरे स्थान पर गमन करते हैं. दिन में एक बार ही आहार-जल ग्रहण करते हैं.
सभी जीवों के प्रति करुणा से ओतप्रोत होते हैं. हमेशा पैदल ही विहार करते हैं और
सर्दी-गर्मी अथवा बरसात में भी किसी प्रकार के आवरण का इस्तेमाल नहीं करते.
मयूरपंख से बनी पिच्छिका एवं कमंडल के अलावा कोई भी वस्तु अपने साथ नहीं रखते और
रोगी होने पर भी चिकित्सालय में जाकर उपचार नहीं लेते हैं. यह सब उनकी दीक्षा के
प्राथमिक नियम होते हैं. इस घटनाक्रम से मुनिश्री की दीक्षा का विच्छेद हो गया है
क्योंकि उन्हें बेहोश अवस्था में ही रात के समय अस्पताल में भर्ती कर दिया गया.
जैनधर्म के इतिहास में यह दुर्घटना काले अध्याय के सामान है जिसे कभी समाज भुला
नहीं सकता.
गिरनार तीर्थ पर जैनों और समाजकंटकों के बीच
पिछले १५ वर्षों से विवाद चल रहा है जबकि मूल रूप से यह जैन तीर्थ जैनधर्म के २२
तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान् की निर्वाण स्थली है. जिसपर समाजकंटकों ने जबरन कब्ज़ा कर
रखा है जो हमेशा जैन तीर्थ यात्रियों को धमकाते रहते हैं, अभद्र व्यवहार करते हैं.
गुजरात उच्च न्यायालय ने २१ दिसम्बर २००४ में गिरनार जी की पांचवी टोंक पर
से अनधिकृत कब्जा और गैर-क़ानूनी रूप से स्थापित दत्तात्रय की मूर्ति को २८ दिसम्बर २००४ तक हटाने के आदेश दिए थे और यह
भी आदेश दिए गए थे कि २८ दिसम्बर २००४ तक न हटाये जाने पर सम्बंधित
विभागों को जबरन हटाने हेतु आदेश दिए जायेंगे!
लेकिन मार्च २००५ में हाई कोर्ट ने अपने २१ दिसम्बर २००४ के आदेश को बदलते हुए नए आदेश में भविष्य में पांचवी टोंक पर किसी भी नए निर्माण पर रोक लगा दी थी और एक कमेटी का गठन किया जिसे इस विषय में सारी जानकारी इकट्ठी करके अगले ६ महीनों में (मतलब नवम्बर, २००५ तक)..गुजरात उच्च न्यायालय को सौंपना था.
साथ ही इसी दिन भरूच (गुजरात) के पास पास राष्ट्रीय राजमार्ग ८ पर मंगलवार को दो श्वेताम्बर जैन साधुओ श्री ज्ञानेश्वर विजय महाराज और श्री हस्तिगिरी विजय महाराज को विहार के समय ट्रक से कुचला गया और वे घटनास्थल पर ही देवगति को प्राप्त हुए। ट्रक चालक दुर्घटना के बाद मौके से भाग निकले. गुजरात में पिछले २० दिनों में ऐसी १० घटनाएं हो चुकी हैं. जिनकी जाँच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए. भारत सरकार एवं गुजरात सरकार से ट्रक चालक को गिरफ्तार कर उस पर कानूनी कार्यवाही करने की मांग की।
मुनि पर इस हुए हमले की समस्त ने जैन समाज
घोर निन्दा कर हमलावरों को गिरफ्तार कर उस पर कठोरतम कानूनी कार्यवाही करने एवं
गिरनार तीर्थ पर पुलिस व्यवस्था कड़ी करने की मांग की।
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