Thursday, June 16, 2011

जैनधर्म पर वार्षिक अधिवेशन का भव्य शुभारंभ

15th June 2011.
देश के जानेमाने जैन विद्वानों की १०७ वर्ष पुरानी प्रतिनिधि संस्था अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद के जैनधर्म-दर्शन एवं जैनविद्या वार्षिक अधिवेशन का महाआयोजन श्री १००८ पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर, २१६, कीका स्ट्रीट, गुलालवाडी, मुंबई ४०० ००४ में किया जा रहा है. यह वार्षिक अधिवेशन १५ जून से १९ जून २०११ तक चलेगा.

आज अधिवेशन का भव्य शुभारंभ वरिष्ठ विद्वान श्री भागचंद जैन भागेंदु की अध्यक्षता एवं सुप्रसिद्ध श्रेष्ठी श्री डी.आर.शाह, बीजापुर के मुख्या आतिथ्य में हुआ. अधिवेशन के शुभारंभ में भारतीय संस्कृति की अनवरत परंपरा के अनुरूप ब्र. अनीता दीदी ने मंगलाचरण किया और इसके पश्चात् भगवन जिनेन्द्र के मनोहारी चित्र का अनावरण अधिवेशन के संयोजक श्री दिनेश जैन, धनपाल जैन, संजय जैन, अनिल जैन एवं राकेश जैन दिल्लीवालों ने किया. ध्वजारोहण का कार्यक्रम गुलालवाडी जैन मंदिर के न्यासीगण श्री जमनालाल जी हपावत, श्री बंशीलाल जी देवड़ा, एवं गणेश लाल हेमावत के शुभहस्ते संपन्न हुआ.

सुप्रसिद्ध जैन संत सराकोद्धारक परम पूज्य उपाध्याय श्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराज की उपस्थिति एवं परम सान्निध्य में अधिवेशन में जैन धर्म एवं दर्शन का शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्यक्रम चलेगा. याद रहे कि महाराजश्री ५० से अधिक दिनों की लंबी पदयात्रा करके कर्णाटक से मुंबई पधारे हैं. देश भर से पधारे २०० से अधिक जैन विद्वान ५ दिवसीय अधिवेशन में विभिन्न सत्रों में जैनधर्म-दर्शन पर आलेख एवं शोध-पत्र प्रस्तुत करने जा रहे हैं. जैनधर्म पर आधारित  यह कार्यक्रम कई वर्षों के पश्चात् मुंबई में आयोजित किया जा रहा है. पं. विनोद शास्त्री (सागर) ने सभी विद्वानों का स्वागत करते हुए शिक्षण-प्रशिक्षण की सामग्री भेंट की.

मुख्य अतिथि के रूप में अधिवेशन को संबोधित करते हुए श्री डी.आर. शाह ने कहा कि उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज सरल और वात्सल्यमयी सोच रखते हैं और उनकी चरणराज ही हम सबके लिए प्रेरणा का काम करती है. उपाध्याश्री ने अपनी अमृतवाणी में कहा कि जो अशुभ को शुभ में बदल डाले वही श्रावक (भक्त) कहलाता है. अन्याय, अनीति, और अज्ञान के अँधेरे में जीने वाला मिथ्यादृष्टि कहलाता है जबकि सद्कर्म, परोपकार एवं ज्ञान के उज्जवल प्रकाश में जीने वाला सम्यकदृष्टि कहलाता है. और वही परमात्मा के शरण में जाकर आत्मकल्याण करता है. उन्होंने आगे कहा कि विश्वशांति की स्थापना तीर्थंकरों के अहिंसा और सत्य के संदेशों पर अमल करने से ही संभव है.

अधिवेशन में विभिन्न सत्रों के दौरान शिक्षण प्रशिक्षण दिया जायेगा जो प्रतिदिन सुबह ८ बजे एवं दोपहर २ बजे दिया जाएगा. टीकमगढ़ मध्यप्रदेश से पधारे युवा विद्वान श्री जयकुमार निशांत ने आभार प्रदर्शन किया व युवाओं से इस अधिवेशन में उपस्थित होकर जैनधर्म के ज्ञान को आगे बढ़ाने हेतु आमंत्रित किया.

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