Thursday, June 16, 2011

Increasing obscene contents in Electronic & Print Media

We all are facing this problem everyday but we are holding long silence. We are now getting habitual of this silently coming Big problem, Big Problem because it is deteriorating our culture and values. All these things are making small kids as 'adults' beyong their age and thinking.  
You can't stop them(ur kids & younger ones) from watching such vulgur advt./browsing such news websites, because these appear in Prime Time on family dramas and on your favourite news channels. This is an alarming situation, which will ruin our family values in days to come. Why days to come! its happening.

This is our Country! Our Bharat! its not England & US, but these news channels/news websites/TV shows are trying to get cheap popularity by any means. Its really dangeraous. Crime against girls/women are increasing day by day because Indian values are vanishing in family relationships. TV and websites are playing the major role. We must check them now.
Speak up! before its too late. 

File complaint to respective authorities, start discussion on FB/twitter.
We can also file a case in Apex Court if get strong support of the society.
List emails in Registrar of Newspapers: dprrni@nic.in, prrni@nic.in, aprhrni@nic.in

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Dear Sir/Madam,
This to inform you that obscene content in electronic media is increasing day by day and the authorities which are supposed to check all this nonsense, are ignorant.
NEWS WEBSITES:
If you can browse some newspaper websites/ news channel websites, these are overflowing with adult contents/ nude photos and there is no check on them. Why the ministry or concerned authorities are not taking any action against such newspapers and websites.
If you visit some of the websites, you will feel that you are browsing no less than a porn website. ( hint: Hindi news website of a biggest media house in India) These websites/ adult contents are spoiling the younger generation of India. Is there any law to stop all this non sense.
Further, there is a cut throat race among the news papers to publish adult/sex content in the name of awareness. why you people do not take any action against all this?
VULGAR ADVERTISEMENTS

Advertisements of perfumes/underwears/condomes/chocolates/contraceptive pills are becoming more & more vulgar beyong our imagination and watching them on TV is really horrible with parents or kids. Are we heading towards a society, which will only show/think/talk 'sex'.
VULGARITY IN COMEDY SERIALS
Actors are doing sexual parodies/comedy on prime time TV without any moral responsiblity and fear of law.
All these things are spoiling the society as whole.
I request that the Ministry of Information & Broadcasting and other concerned authorities to take stringent action against all this vulgarity grwoing in electronic and print media.
I also request to issue Guidelines to news channels/newspapers/ news websites on the content (which they can publish) as early as possible. I hope for an early and positive response in this regard.

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Thanks and Regards,
Praveen Kumar Jain

“जैनधर्म-दर्शन एवं जैनविद्या वार्षिक अधिवेशन”

आमंत्रण
INVITATION

अखिल भारतीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद
का  
वार्षिक अधिवेशन
जैनधर्म-दर्शन एवं जैनविद्या

बुधवार, १५ जून २०११, से रविवार, १९ जून २०११ तक
Wednesday, 15th June 2011- Sunday, 19th June 2011

स्थान: प्रवचन हॉल, श्री १००८ पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर,
२१६, कीका स्ट्रीट, गुलालवाडी, मुंबई ४०० ००४

VENUE: Pravachan hall at of Shri 1008 Parshwanath Digambar Jain Mandir,
Gulalwadi, Mumbai – 400 004


पावन सान्निध्य :
परम पूज्य उपाध्याय
श्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराज


देश के जानेमाने जैन विद्वानों की प्रतिनिधि संस्था अखिल भारतीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद के जैनधर्म-दर्शन एवं जैनविद्या वार्षिक अधिवेशन का आयोजन श्री १००८ पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर, २१६, कीका स्ट्रीट, गुलालवाडी, मुंबई ४०० ००४ में किया जा रहा है. देश भर से पधारे २०० से अधिक जैन विद्वान ५ दिवसीय अधिवेशन में विभिन्न सत्रों में जैनधर्म-दर्शन पर आलेख एवं शोध-पत्र प्रस्तुत करेंगे.

हम आपसे विनम्र अनुरोध करते हैं कि अवश्य पधारें


संपर्क :
श्री अशोक दोशी, श्री जमनालाल हपावत
Mr. Ashok Doshi, Shri Jamnalal Hapawat
संयोजक,
जैनधर्म-दर्शन एवं जैनविद्या वार्षिक अधिवेशन
अखिल भारतीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद
मोबाइल : ०९८२०४ - ३०११४
Coordinator, “JainDharma-Darshan Evam Jain Vidya Varshik Adhiveshan”
Akhil Bharatiya Digambar Jain Shashtri Parishad
Contact No. 098204-30114

जैनधर्म पर वार्षिक अधिवेशन का भव्य शुभारंभ

15th June 2011.
देश के जानेमाने जैन विद्वानों की १०७ वर्ष पुरानी प्रतिनिधि संस्था अखिल भारतवर्षीय दिगंबर जैन शास्त्री परिषद के जैनधर्म-दर्शन एवं जैनविद्या वार्षिक अधिवेशन का महाआयोजन श्री १००८ पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर, २१६, कीका स्ट्रीट, गुलालवाडी, मुंबई ४०० ००४ में किया जा रहा है. यह वार्षिक अधिवेशन १५ जून से १९ जून २०११ तक चलेगा.

आज अधिवेशन का भव्य शुभारंभ वरिष्ठ विद्वान श्री भागचंद जैन भागेंदु की अध्यक्षता एवं सुप्रसिद्ध श्रेष्ठी श्री डी.आर.शाह, बीजापुर के मुख्या आतिथ्य में हुआ. अधिवेशन के शुभारंभ में भारतीय संस्कृति की अनवरत परंपरा के अनुरूप ब्र. अनीता दीदी ने मंगलाचरण किया और इसके पश्चात् भगवन जिनेन्द्र के मनोहारी चित्र का अनावरण अधिवेशन के संयोजक श्री दिनेश जैन, धनपाल जैन, संजय जैन, अनिल जैन एवं राकेश जैन दिल्लीवालों ने किया. ध्वजारोहण का कार्यक्रम गुलालवाडी जैन मंदिर के न्यासीगण श्री जमनालाल जी हपावत, श्री बंशीलाल जी देवड़ा, एवं गणेश लाल हेमावत के शुभहस्ते संपन्न हुआ.

सुप्रसिद्ध जैन संत सराकोद्धारक परम पूज्य उपाध्याय श्री १०८ ज्ञानसागरजी महाराज की उपस्थिति एवं परम सान्निध्य में अधिवेशन में जैन धर्म एवं दर्शन का शिक्षण-प्रशिक्षण का कार्यक्रम चलेगा. याद रहे कि महाराजश्री ५० से अधिक दिनों की लंबी पदयात्रा करके कर्णाटक से मुंबई पधारे हैं. देश भर से पधारे २०० से अधिक जैन विद्वान ५ दिवसीय अधिवेशन में विभिन्न सत्रों में जैनधर्म-दर्शन पर आलेख एवं शोध-पत्र प्रस्तुत करने जा रहे हैं. जैनधर्म पर आधारित  यह कार्यक्रम कई वर्षों के पश्चात् मुंबई में आयोजित किया जा रहा है. पं. विनोद शास्त्री (सागर) ने सभी विद्वानों का स्वागत करते हुए शिक्षण-प्रशिक्षण की सामग्री भेंट की.

मुख्य अतिथि के रूप में अधिवेशन को संबोधित करते हुए श्री डी.आर. शाह ने कहा कि उपाध्याय श्री ज्ञानसागरजी महाराज सरल और वात्सल्यमयी सोच रखते हैं और उनकी चरणराज ही हम सबके लिए प्रेरणा का काम करती है. उपाध्याश्री ने अपनी अमृतवाणी में कहा कि जो अशुभ को शुभ में बदल डाले वही श्रावक (भक्त) कहलाता है. अन्याय, अनीति, और अज्ञान के अँधेरे में जीने वाला मिथ्यादृष्टि कहलाता है जबकि सद्कर्म, परोपकार एवं ज्ञान के उज्जवल प्रकाश में जीने वाला सम्यकदृष्टि कहलाता है. और वही परमात्मा के शरण में जाकर आत्मकल्याण करता है. उन्होंने आगे कहा कि विश्वशांति की स्थापना तीर्थंकरों के अहिंसा और सत्य के संदेशों पर अमल करने से ही संभव है.

अधिवेशन में विभिन्न सत्रों के दौरान शिक्षण प्रशिक्षण दिया जायेगा जो प्रतिदिन सुबह ८ बजे एवं दोपहर २ बजे दिया जाएगा. टीकमगढ़ मध्यप्रदेश से पधारे युवा विद्वान श्री जयकुमार निशांत ने आभार प्रदर्शन किया व युवाओं से इस अधिवेशन में उपस्थित होकर जैनधर्म के ज्ञान को आगे बढ़ाने हेतु आमंत्रित किया.

Friday, June 3, 2011

असुरक्षित होती जैन मुनियों की पदयात्रा


30 Nov, 10 21:56

२९ नवम्बर, २०१० को प्रातः मनोहर ग्राम के पास एक ओर सडक दुर्घटना में अचल गच्छ के आचार्य श्री गुनोदयसूरीजी के समुदाय की चार साध्वियां दुर्घटनाग्रस्त हुई और उनमें से दो की घटनास्थल पर जीवनलीला समाप्त हो गयी और दो साध्वियां जीवन से संघर्श कर रही है। यह कोई पहली घटना नहीं है और कोई सहज घटित दुर्घटना भी नहीं है, आखिर क्यों अहिंसा को अपना जीवन आदर्ष मानने वाले इन अकिंचन एवं परिव्राजक पदयात्री जैन मुनियों को सडक दुर्घटनाओं में अपना जीवन समाप्त करने के लिये विवष होना पड रहा है।  

क्या यह यातायात व्यवस्था का विद्रूप एवं हिंसक होता स्वरूप है या फिर किसी वर्ग विषेश का शडयंत्र? ज्यों भी कारण रहे हों इन दुर्घटनाओं के, समाधान की अपेक्षा जरूरी है। भारतीय संस्कृति में सभी धर्मों, दर्शनों में पदयात्रा का विशिष्ट महत्व है। जैन परम्परा में यह साधुचर्या का अनिवार्य अंग है। आज के सुविधावादी युग में हजारों हजार जैन मुनि हर साल लाखों किलोमीटर की पदयात्राएं करके धर्म, अहिंसा, सदाचार, समता, समन्वय, शांति और सौहार्द का संदेश जन-जन के बीच पहुंचाते हैं।

सदियों से चली आ रही पदयात्रा की यह परम्परा न केवल भारत में बल्कि समुची दुनिया में आदरसूचक रही है। लेकिन विगत कुछ समय से जैन मुनियों की इन पदयात्राओं पर असुरक्षा और हिंसा के बादल मंडरा रहे हैं। अनेक ऐसी घटनाएं दो वर्षों में घटित हुई हैं जिनमें अनेक जैन आचार्य, मुनि और साध्वियां दुर्घटनाग्रस्त होकर काल-कवलित हो गई हैं। सदियों से चली आ रही पदयात्रा की इस आदर्श परम्परा में इस तरह की घटनाओं का बहुतायत में होना न केवल चिंता का विषय है बल्कि शर्मनाक, लज्जाजनक भी है। एकाएक पदयात्राओं के दौरान इन दुर्घटनाओं का होना क्या षडयंत्र है या फिर यातायात व्यवस्था का लडखडाना? जो भी स्थिति हो पदयात्राओं के दौरान जैन मुनियों की सुरक्षा सरकार की प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए।

आश्चर्य का विषय है कि बडी संख्या में घटित इन दुर्घटनाओं और उनमें अनेक शीर्षस्थ आचार्यों, मुनियों, साध्वियों के दुर्घटनाग्रस्त होकर जीवन समाप्त हो जाने की घटनाओं के बावजूद चहुं ओर सन्नाटा पसरा रहा। न सरकार हलचल में आई, न जैन समाज के शीर्षस्थ संगठनों ने कोई ठोस कार्रवाई की। क्या जैन समाज की सहिष्णुता, अहिंसा, समता को कमजोर कर आंका जा रहा है। क्या इस तरह की घटनाएं किन्हीं मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, पारसी आदि धर्मगुरुओं के साथ घटित होती तो भी इसी तरह की सरकारी उपेक्षा और उदासीनता देखने को मिलती?

यहां प्रश्न किसी के साथ तुलना का नहीं बल्कि भारत की एक आदर्श और गौरवपूर्ण संस्कृति पर अनायास मंडरा रहे खतरों पर नियंत्रण का है। विकास की उपलब्धियों से हम ताकतवर बन सकते हैं, महान नहीं। महान उस दिन बनेंगे जिस दिन किसी निर्दोष पदयात्री मुनि का खून सडक को लाल नहीं करेगा।
 हाल ही में घटित घटना के अलावा जब राजस्थान के बायतू (बालोतरा) के पास जीप की टक्कर से आचार्य जम्बूविजयजी एवं नमस्कार मुनिजी घटनास्थल पर ही देह से विदेह हो गए या इसी घटना के आसपास गुजरात के मेहसाना के पास चार साध्वियां सडक दुर्घटनाएं में काल-कवलित हो गए। वर्ष २००९ की इन घटनाओं के परिपार्श्व में और भी ऐसी अन्य घटनाएं घटी जिन्होंने संपूर्ण जैन समाज को न केवल आहत किया बल्कि सरकार की उदासीनता के प्रति आक्रोश भी पनपाया। उन्हीं दिनों सुखी परिवार अभियान के प्रणेता गणि राजेन्द्र विजयजी दिल्ली में इन घटनाओं को लेकर सरकार और राजनीतिक दलों के अनेक शीर्षस्थ व्यक्तियों से मिलें। उसके बाद भी वे निरंतर इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो इसके लिए प्रयासरत रहे। लेकिन इस सबके बावजूद सरकार ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया। जैन मुनियों की पदयात्रा की परम्परा अक्षुण्ण रहे और उन पर मंडरा रहे असुरक्षा के खतरों से निजात मिल सक इसके लिए सरकार को ठोस कदम उठाने ही चाहिए।
 चाहे कोई दिगम्बर हो या श्वेताम्बर एक ही संस्कृति की दो महान शाखाएं हैं। पंथ, सम्प्रदाय, गच्छ या संगठन बाह्य पहचान है, अंतरंग व्यक्तित्व तो है जैनत्व की संस्कृति, जिसके पहरूए हैं- अहिंसा, अभय, अनेकांत, अपरिग्रह और अनाग्रह। इसकी सबसे बडी पहचान है त्याग और तपस्यापूर्ण जीवनशैली, जिसका सबसे सशक्त माध्यम है पदयात्रा। इसी पदयात्रा के कारण न केवल जैन बल्कि जैनेत्तर लोग भी जैन मुनियों को आदर देते हैं। यह पदयात्रा यदि इन मुनियों की जीवन लीला समाप्ति की माध्यम बनती है तो निश्चित ही एक चिंतनीय मुद्दा है। समय रहते इस ज्वलंत समस्या का समाधान होना नितांत जरूरी है। जैन मुनियों की पदयात्रा समूची दुनिया के लिए अनुकरणीय रही है जिसका लम्बा एवं समृद्ध इतिहास रहा है। महात्मा गांधी ने इसी से प्रेरणा लेकर लंबी-लंबी पदयात्राएं की, वर्ष १९३० में डांडी यात्रा की और जन-जन को आजादी के लिए तैयार किया।

चार-पांच दशक पूर्व दक्षिण बिहार और आंध्रप्रदेश में नक्सली हिंसा का दौर बढा तो शांतिदूत आचार्य विनोबा भावे ने भूदान पदयात्रा, शांतियात्रा का मिशन बनाकर समूचे भारत की पदयात्राएं की। डॉ. नाटोविच ने ईसामसीह की जीवन में लिखा है कि ईसा जब चौदह वर्ष के थे तो सौदागरों के एक दल के साथ भारत (सिंध) आए और उन्होंने लगातार छह वर्षों तक भारत की पदयात्रा की। इसी दौरान जैनों की क्षमा और दया, बौद्धों का अक्रोध और करुणा इन विचारों का ईसा मसीह के जीवन पर गहरा प्रभाव पडा। बुद्ध के साथ-साथ जैन तीर्थंकरों ने पदयात्रा के माध्यम से ही परोपकार और जनकल्याण के कार्य किए। उनका उद्घोष होता- विहार चरिया इसिणं पसत्था-ऋषि महर्षियों के लिए विहार करना, चलते रहना ही श्रेष्ठ है। गामाणुगामं दूइज्जमाणे-एक गांव से दूसरे गांव, एक नगर से दूसरे नगर नदी की तरह बहते रहना, चलते रहना यही उनका व्रत-संकल्प होता है। उनका घोष होता है चरैवेति चरैवेति-चलते रहो, चलते रहो। तथागत बुद्ध ने अपने शिष्यों से कहा-चरथ भिक्खवे चारिकां, लोकहिताय, लोककल्याणाय च। भिक्षुओं! संसार के हित और कल्याण के लिए चलते रहो, चलते रहो। संपूर्ण रामायण का सार भी भगवान राम की पदयात्राओं में ही समाहित है। आज आधुनिक संदर्भ में चाहे राजनीतिक दल हो, या सामाजिक संगठन हो जन-जन को आकर्षित करने या उन्हें उद्बोध देने के लिए पदयात्रा का माध्यम ही चुनते हैं। उनकी यात्राओं के लिए सरकार समुचित सुरक्षा प्रबंध करती है, फिर जैन मुनियों की पदयात्राओं की सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं? जैन मुनियों की पदयात्रा तो इतनी कष्टदायी और पीडादायी होती हैं कि उसके समक्ष जन-जन का मस्तक सहज ही झुक जाता है।

फिर ये पदयात्राएं तो निस्वार्थ होती है जन-जन के उत्थान के लिए होती है। आखिर इन पर जो संकट के बादल मंडराने लगे हैं उनकी मुक्ति और सुरक्षा की व्यवस्था पर क्यों नहीं ध्यान दिया जा रहा है। हम चाहते हैं कि गणि राजेन्द्र विजयजी के स्वर में स्वर मिलाते हुए समूचा जैन समाज और मानवीय समाज संकट की इन घडयों में संवेदनशीलता, सौहार्द और मानवीयता की दृष्टि से इस ज्वलंत समस्या पर जागरूक बने, शंखनाद करे और भारतीय संस्कृति के आदर्श को धुंधलाने से बचाए।

Source : - ललित गर्ग